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Tuesday, August 31, 2010












                अचानक गर्मियों के दिन





थका हारा बैठ गया

मैं पेड़ के नीचे सुस्ताने

कुछ पल छांव में आराम करने।

अचानक बच्चो का शोर

करता था बेचैन और बोर

और मैं खो जाता हूं

अपने बचपन में।

सामने एक पेड़ की टहनी

उस पर मकड़ जाल में

फंसी एक मधुमक्खी

छटपटा रही है

अपनी जान बचाने की खातिर।

लगा हम भी उस मुध मक्खी

की मांनिद ही तो हैं

जो छटपटाते रहते हैं

कभी अपने अतीत की खातिर

कभी अपने वर्तमान को

देखकर हरपल।

सामने बच्चो का शोर

कानों में जो अभी तक चुभ रहा था

अचानक पसंद आने लगा

अचानक उस शोर में

अपना बचपन याद आने लगा।।

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