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Tuesday, February 15, 2011

2.




खुरदरे हाथों में गुलाब की पंखुड़ी
भावनात्मक शोषण की यह घड़ी
शातिर घाघ ठगों की फौज
महिला देह की गहराई नापती रोज।
प्यार की दुहाई देते न अघाते
प्यार करने वालों को मौत का फतवा सुनाते
नकलची सोच और विचारों से
इरादे वीभत्स कुपित इनकी सोच।


मीड़िया और अखबार भी हैं गुलाम
उनको टीआरपी से ही है काम
समाज में कामुकता को परोसते
निजी स्वार्थ हेतु दुराचार का बढ़ाते।
जहां नारी को तंदूर में पकाया जाता है
वहां नारी विमर्श का नारा देने वाले
अपनी कुर्सी को लोलुपता में बचाते
नारी के नारे देकर समाज का फुसलाते।


प्यार तुम क्या करोगे किसी से
जब अपनों से नही रहा ऐतबार
कैसी ये रीति कैसा है ये त्यौहार
मर गई सोच कहां से आयेंगे सुविचार।
प्यार तो किया था लक्ष्मीबाई, चन्दzशेखर ने
भगत सिंह और राजगुरू ने
अपने वतन पर जान गंवा दी
अपने देश की खातिर जवानी लुटा दी।


उनके बलिदान को भूलकर
समाज में वीभत्सता और विलासिता
व निजी लाभ हेतु देह बाजार सजाने वालो
तुम प्यार को क्या पहचानोगे?

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