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Tuesday, February 15, 2011

धूल खाती चन्द किताबें,कुछ कागज के टुकड़ों को
हो सके तो रखना सहेज कर, इसी बहाने याद करोगी।
मेरे जाने के बाद अगर तुम, इन कागज में छान सकोगी
धूल भरी कुछ पंक्तियों में, पzेम प्यार है जान सकोगी।
कुछ शब्द मिलेंगे इनमें, जो तब साकार हो जायेंगे
अपना अर्थ बताकर फिर, तुममें मेरा अक्ष दिखायेंगे।
कुछ गीतों में मेरा मर्म होगा, कुछ में होंगे भाव सजीले
जान सकोगी इस अनगढ़ में, भाव प्रेम के कभी सजे थे।
ये पन्ने मेरी पूंजी हैं, सार है ये मेरे भावों का
किया समर्पण तुमको मैंने, अपने हिय अरू अपने मन से।
तब आभास करायेंगे ये, शब्द कोई चौंकायेंगे भी
मेरे उर में मेरे मन में, पूजा अरू प्रार्थना में अवनि ही थी।
मैंने कब खुद को पहचाना, जो तुमको मैं जान सक
हां इतना है अवनि सुनो तुम, तुम सा कोई नही मिला।
इन पन्नों में जरा संभलर, कहीं तुम्हारा नाम लिखा है
कागज, कलम और स्याही में, सदा तुम्हारा अक्ष दिखा है।
मैं तो धन्य हुआ हूं पाकर, संग तुम्हारा प्रेम नेह भी
कितना बड़ भागी हूं देखो,मेरी रचना में भी थीं तुम।।





















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