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Tuesday, February 15, 2011

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आदमी दिन, बार मनाकर
उन चीजों के प्रति अपना
दायित्व पूर्ण मानता है
जिन्हें उसकी करनी कथनी
ने सकट में ड़ाल दिया है।


जैसे वन दिवस, ओजोन दिवस
पर्यावरण दिवस महिला दिवस
आदि-आदि मनाकर उन्हें सांत्वना
दी जाती है कि संजीदा हैं हम ।


लेकिन प्यार का दिवस मनाकर
किसके प्रति संजीदगी दिखाई जाती है?
प्यार तो अजर, अमर हैं जहां में
प्यार की कई परिभाषायें और
दिशायें हैं नातों रिश्तों में।


मां, पिता, बहन, भाई, दोस्त
पत्नी, बच्चे और अपने पराये
सभी के साथ होता है प्यार
अपार है इसकी परिभाषा और दुलार।
लेकिन नकची बंदरों ने कर दिया
वीभत्स इसका स्वरूप और
इसे एक दूसरे को छलने का
फरेव और ठगने का नाम देकर
14 फरवरी को कर दिया इसके नाम।


कभी चाकलेट कभी गुलाब का दिन
कभी फ~लेग का दिन और कभी
टेड़ीवियर का दिन मनाने वाले
कभी भी ईमानदारी का दिन
कभी कर्तव्यनिष्ठता का दिन
कभी दयालुता का दिन
कभी परोपकार का दिन
कभी छलाव और दिखावा
न करने का दिन क्यों नही मनाते?


प्यार के नाम पर वीभत्स और
फरेब करने वाले क्यों किसान दिवस
और क्यों महंगाई दिवस नही मनाते?

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