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Monday, February 28, 2011

तुम्हीं बताओ मैं क्या करता..?


पूजा को जब कर फैलाता
अक्ष तुम्हारा दिख जाता है
चक्षु बंद कर ध्यान लगाता
भाव तुम्हारा जग जाता है
मत्रों में जब शब्दा बांचता
नाम तुम्हारा आजाता है
तुम्हीं बताओ मैं क्या करता..?


पल-पल याद सताती रहती
घड़ी-घड़ी तड़पन बढ़ जाती
एक हूक सी हिय में उठती
तन्दzा-निदzा हर ले जाती
बेचैनी तब बढ़ जाती है
याद तुम्हारी जब आती है
तुम्हीं बताओ मैं क्या करता..?


नाम तुम्हारा कोई लेता
जब भी कोई तुम्हें देखता
अन्तस में कुछ होने लगता
उथल-पुथल कुछ मन को करता
मन करता बस मैं ही देखूं
और सभी से तुम्हें बचा दूं
’अवनि’ हमारी नेह तुम्हीं से
तुम्हीं बताओ मैं क्या करता..?


सारे भाव तुम्हीं से पाये
तुमने मेरे स्वप्न संजोये
’अवनि’ तुम्हारी नेह थाप ने
म्ेरे अन्तस कलुष मिटाये
सरे बंधन तोड़ चुका अब
सिर्फ तुम्हारे भाव संजोये
पूजा, प्रेम, परधि अरू मन में
सिर्फ तुम्हारी छवि बिठला दी
तुम्हीं बताओ मैं क्या करता..?।।


दिनेश ध्यानी
28,फरवरी, 2011











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