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Friday, March 4, 2011

कंकर-कंकर में है शंकर



कण-कण में गौरा वास जहां
गंगा का उद~गम जहां हुआ
देवों ने भी तो वास किया।
पाण्डव भी आये अन्त जहां
कान्हा ने भी पग यहां धरे
सीता अरू राम की लीली से
जो देव भूमि भी पुण्य हई।


वो देवभूमि हैं स्वर्ग समान
जिसका कण-कण है दीप्ति मान
है भूमि हमारे भावों की
भारत का है वो उच्चभाल।
उत्तर की काशी यहीं बसी
द्वारा द्वारका हरि का द्वार
पावन कण-कण है पग-पग पर
देवों मानव का छुपा इतिहास।


गंगा का तट अरू पीपल की छांव
उपवन अरू अनुपम अपना गांव
है शक्ति जहां पर जीवटपन
कण-कण शंकर दै दिव्यमान।।
at 3-07 pm. 4/3/11

1 comment:

  1. दिनेश सुपुत्र
    चिरंजीव भवः

    वो देवभूमि हैं स्वर्ग समान
    जिसका कण-कण है दीप्ति मान

    बहुत ही भावपूर्ण भावनाओं से भरपूर भावनात्मक

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