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Monday, March 21, 2011

आदमी


उम्र भर यूँ मुफलिसी में दिन बिताता आदमी
हर घडी बस बेकसी में जीता राह ये आदमी.
सोच कर कुछ तो भला होगा हमारा जिंदगी
हर घडी अपनों की खातिर खफ्ता रहा ये आदमी.
तिनका तिनका जोड़कर घरोंदा बनाता आदमी
फिर बुढ़ापे क्यों ठोकरें खाता फिरे ये आदमी?
जिनके खातिर मरता रहा जी ना पाया आदमी
अपनों ने क्यों दर किनारे कर दिया ये आदमी.
दूर है अपनों से बिल्कुल है बेगाना आदमी
सहर था अपना कभी अब है बिराना आदमी
डर रहा अपनों अब लाचार है ये आदमी
क्या करेघ् जाये कहाँ इस उम्र में ये आदमी?






21/3/11 at: 1:23pm.








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