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Monday, August 2, 2010

सारा जीवन बीत गया




जीवन के बीते वर्षों में
जो जी पाया हूWं मैं अब तक
कुछ बीत गया कुछ रीत गया
बाकी मुट~ठी से छीज गया।


पाना चाहता था मैं सबकुछ
पर पा न सका कुछ भी अब तक
आशा-तृष्णा के बंधन में
मैं असली मकसद भूल गया।


जिनको भzमवश अपना समझा
जीवन पूWंजी सम पाला था
वह सब कुछ सच में भzम ही था
अब तो मेरा दिल टूट गया।


दुनियाWं में रिश्ते अरू नाते
थे कभी निभाने की खातिर
मर मिट जाते थे लोग यहां
अपनी आन बचाने को।
लेकिन अब वैसा समय नहीं
भाई-भाई का नही रहा
सब कुछ पाने की हसरत में
रिश्तों का गुलशन बिखर गया।


सपनों की सेज संजाये था
दुनियाW की रौनक देख यहाWंं
लेकिन जब देखा हाल यहां
मेरा तो सपना बिखर गया।


सपनों में जीता रहा सदा
न कभी हकीकत को समझा
अब जागा भी तो क्या जागा
जब सारा मंजर बीत गया।।

2 comments:

  1. achhi rachna, ache bhaav.

    jara galtiyon par dhyaan dein, edit kar punah post karen.


    shubhkamnayen

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  2. kya apne rachna likhi hai pure jiwan ki sachai hi yahi hai

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