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Monday, August 2, 2010




















   मुझे मत मारो


मुझे भी देखने दो
स्वपनिल आकाश
खुली धरती
उगता सूरज
छिटकी चांदनी
ऋतु परिवर्तन
वसंत बहार
मुझे भी जग में आने दो।
होने दो मुझे परिचित
जगत की आबोहवा से
जिन्दगी की धूप छांव से
जीने के अहसास से।
लेना चाहती हूं सांस
मै भी खुली हवा में,
पंछियों की चहचहाट
और हवा की सनसनाहट में।
देना चाहती हूं आकार
मैं अधबुने सपनों को,
ख्वाबों और खयालों को
उड़ना चाहती हूं
अनन्त आकाश में
पंछियों की मानिंद
बहना चाहती हूं
हवा की भांति।
मुझे मत मारो
मांं, बाबू जी
दादा जी, दादी जी
आने दो
मुझे इस संसार में
जी लेने दो
मेरा जीवन।
गिड़गिड़ा रही थी
एक लड़की
जब की जा रही थी
उसकी भूzण हत्या
अपनों के द्वारा।

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