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Monday, July 26, 2010

नारी
दिनेश ध्यानी


सब कहतें हैं वो सुनती हैं
सब की खातिर वो बुनती है
सबकी खातिर उसकी रटना
सुबह शाम बस यों ही खटना-


अपना जीवन अर्पित करके
खुद की आभा कहीं दबाकर
सबके सपनों को सच करती
खुद को भुलाकर बस वो चलदी...


उसके सपने, उसकी चाहत
उसका कुछ भी नहीं रहा बस
बस वो औरों की खातिर
खुदको अर्पण करती जाती...


सच कितना सहती है नारी....ध्यानी..




मेघों से है घटा गगन में
धरती तपती अपनी अगन में
पंछी तरण ताल अरु तलैया
सब पानी की लगें लगन में.


मनुज बहुत ही बुरा जगत
मेंसब कुछ उसने रौंदा पल में---ध्यानी

1 comment:

  1. narri teri yahi kahani sunnle sabki jabani.........kya har insan narri ko samjhta hai......par accha lagta hai koi to samjhta hai.....

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